Tuesday 26 March 2013

विश्व पटल पर छाप छोड़ते 63 वर्षिय भारतीय गणतँत्र मेँ अपने को ठगा महसुस करता भारतीय नागरिक

विश्व पटल पर छाप छोड़ते 63 वर्षिय भारतीय गणतँत्र मेँ अपने को ठगा महसुस करता भारतीय नागरिक
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जैसा कि हमारे संविधान की प्रतावना मेँ कथन है कि
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हम भारत के लोग...
इस संविधान को अंगीकृत,अधिनियमित और आत्मार्पित करते है।"
यह इंगित करता है कि भारतीय संविधान का स्रोत जनता की शक्ती है
जबकी आप सभी भलीभाँति जानतेँ हैँ कि संविधान निर्मात्री संविधान सभा के सदस्योँ का निर्वाचन वयस्क मताधिकार के आधार पर नही किया गया था और ही ये प्रत्यक्ष निर्वाचन के द्वारा चुने गये थे इसके अतिरीक्त संविधान सभा द्वारा बनाऐ गये संविधान को स्वीकार भी नही किया गया था या यो कहे कि भारतीय जनता तो इसी बात से आलहादीत थी कि उसे आजादी मिल गयी उसे इस बात की सुधि तक नही रही कि उसके लिऐ कोई नये नियम कानुन भी बनाऐ जा रहेँ है जिन्हे चिन्ता थी जो आजादी के सुत्रधार थे गाँधी जी उनकी भी नही चल पायी वो जगह जगह दंगा रोकने मेँ व्यस्त रहे
और 1935 के भारत शासन अधिनियम मेँ कुछ संसोधन कई अन्य देशो के संविधान की अच्छाईयोँ को जोड़ते हुए भारत पर शासन करने के लिऐ भारतीय नागरिको पर यह कहते हुए कि हम भारत के लोग ही संप्रभु है एक नया संविधान थोप दिया गया
जिसको 26 नवम्बर 1949 को अंगिकृत किया गया जिस पर संविधान सभा के
284
सदस्योँ नेँ हस्ताक्षर किये
जिसे 26 जनवरी 1950 से पूर्ण रुप से लागु कर दिया गया
तब से आब तक 63 वर्ष व्यतीत होने के बाद भारत ने 
शिक्षा,कृषि,व्यवसाय,उद्योग,रक्षा आदि के क्षेत्रो मे चतूर्दिक विकास किया और विश्व पटल पर अपनी छाप छोड़ी 
इसी संविधान के आधार पर भारत के कई राज्योँ मे शासन करने वाले मुख्यमंत्रियोँ ने सुशासन तरक्की का नया अध्याय भी जोड़ा 
फिर भी 
संविधान की आत्मा कहे जाने वाले प्रस्तावना के अनुरुप भारतीय नागरिकोँ को वह कुछ मिला जिसकी परिकल्पना उसमेँ की गयी है

भारत के माननीयोँ ने बिगत वर्षो मेँ उनकी आशाओँ पर कुठाराघात किया

आज भारत देश 
वंश वाद
साम्प्रदायिकता
क्षेत्रीयता
जातिवाद
तुस्टीकरण
सत्ता लोलुपता
और
स्वार्थ आधारित 
राजनीति के भँवर मेँ ऐसे फँस गया है कि इस स्थिति से निजात के लिऐ किसी ऐसे नेतृत्व की तलाश मेँ है जो इन समस्याओँ के जाल से निकाल सके
राजनीतिक सँस्कृति विकृत हो चूकि है जनता के कष्टोँ मेँ उत्तरोत्तर वृद्धि होती जा रही है
वर्तमान परिवेश मेँ
भय
भ्रस्टाचार
लुटमार
असुरक्षा
से ग्रसीत जनता असूरक्षित महसूस कर रही है
अपनी उचित मागोँ को लेकर शाँति पूर्वक प्रदर्शन कर रहे जनता को लाठीयोँ से पीटा जा रहा है
इस राज्य व्यवस्था पर से जनता का विश्वास उठता जा रहा है
क्या दामिनी जैसे कई अन्य को यह संविधान न्याय दिलाने मे सक्षम है
क्या इरोम शर्मिला को न्याय मिलेगा
क्या भारत मे जीप घोटाले से प्ररम्भ हुआ घोटाले का सिलसीला हाल ही मे हुए दूरसंचार घोटाले पर समाप्त हो सकेगा और दोषियोँ को सजा मिलेगी और घोटाले की राशी भारत के कोषागार तक पहुँचेगी
क्या हेमराज का कटा सर हम वापस ला पाऐँगेँ
क्या फिर से गैस पेट्रोल के मुल्य वर्ष मेँ तीन बार वृद्धि पर रोक लग पाऐगा
ऐसे जाने कितने और सवाल हम भारतीयोँ के मन उठते है
कभी कभी ऐसे लगता है क्या यह संविधान केवल माननियोँ और सरकारी तँत्र के लोगोँ के हितार्थ है क्या लेकिन एकदम ऐसा भी नही है
ऐसा लगता है बीच मे हम तन्द्रा मे चले गये थे शायद उसी का परिणाम है
परन्तु अब उन लोगो को भी अच्छी तरह समझ लेना चाहिए अब हम जागृत हो चूके है हमने अपनी ताकत भारतीयता को भी इन माननियो को दिखा चूके है
और समय आने पर हम इन्हे बता भी देँगे कि इनकी औकात क्या है
गलती से ही सही हमारे संविधान मेँ वास्तव मेँ हमेँ संप्रभु बनाया हमेँ मत का अधिकार देकर
इस गणतंत्र को हम विश्व के महानतम गणतँत्र मे शामिल करेगेँ 
यह देश हमारा है
हम अपना जानते है तो
कर्तव्य भी निर्वहन भी करेँगे
जय हिन्द
जय माँ भारती
आचार्य नीरज — 

आचार्य नीरज

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