Tuesday 26 March 2013

तो जीने दो हमेँ हमारे अपने सपनोँ के सँग


हाँ हमको भी पसन्द है
आजादी
और
तुम भी देना ही चाहते हो हमेँ
आजादी
तो जीने दो हमेँ हमारे अपने सपनोँ के सँग
जहा हो मेरा अपना आसमाँ
जहाँ उड़ सकूँ मै अपने पँख फैला
परन्तु
उससे पहले तुम्हे मूझे मुक्ति देना होगा
कि मै एक बेटी हूँ
कि मै एक पत्नी हूँ
कि मै एक माँ हूँ
इस पहचान से


आचार्य नीरज

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