अपनो की दूनियां मेँ सभी तो अपने ही हैँ कोई बेगाना तो नही है
अपना वो है
जो भरी सभा मेँ आपके सदगुणोँ की बात करे परन्तु जब आप उसके साथ अकेले हो और यदि आपमेँ कोई अवगुण व्याप्त हो तब उसको केवल आप से ही आपके भले के लिऐ बता दे
जब आप खुशी के पल मेँ हो तो ईर्ष्या रहित होकर झूम उठे
जब दूःख के पल मेँ हो तो वगैर दिखावे के उसका हृदय करुण क्रन्दन कर उठे
जो एकदम आपकी ही प्रतिमूर्ति हो
जिसके सामने आप अहंकार रहित होकर सम्पूर्ण समर्पण कर दे
जब वो आप से आपके बारे मे पुछ पड़े कि कौन हो तुम और आपका अन्तस बोल उठे अब तो तुँ ही तुँ है
जब आपके
हर साँस मेँ
हर धड़कन
हर रोम रोम मेँ
वो ही हो
और ध्यान देने की बात ये भी है कि
जो आपना होता है वो अपना सा लगने ही लगता है
और जो अपना लगे उसे अपना बना भी लेना चाहिऐ
जब हम लोगोँ को अपना बना लेते है तो अपनापन स्वाभाविक रुप से दिर्ष्टिमान होने लगता है
आचार्य नीरज
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