सच मेँ
हमेँ तो इन रिश्तोँ के बनने बिगड़ने के खेल के कायदे कानुन कुछ निराले ही लगते हैँ
हजारोँ मील दुर जन्मा/बैठा व्यक्ति एक ही मुलकात मेँ सदा के लिए हमारा और हम उसके हो जाते है
दूर होकर भी वो हमेशा पास-पास रहता है
जैसे हर घड़कन व साँसोँ मे बसा हो
और
हरपल साथ रहने वाला/मिलने वाला तनिक सी बात को प्रतिष्ठा का सवाल बनाकर पास बहुत होकर भी दूर हो जाता है बेगानोँ की तरह
और
हाँ
रही बात वक्त की तो
भईया
ये तो वक्त ही तो है जो अपनी गति से चलता ही रहता है
चलता ही रहता है
उसे किसकी परवाह कि
कौन रिश्ते टूटे/
कौन रिश्ते जूड़े
लेकिन
कुछ लोगोँ को रिश्ते की परख होती है
तो फिर उनका क्या कहना
चाहे वक्त कैसी भी चाल चलेँ वो उसकी गति को पहचानते हुए
वक्त से अपने कदम मिलातेँ हैँ
वो रिश्तोँ के साथ जीतेँ हैँ
रिश्तोँ के साथ मर भी जाते है
इतना ही नही
वे लोग ही
रिश्तोँ को वक्त के साथ अमर भी कर जाते हैँ
आचार्य नीरज
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