Tuesday 26 March 2013

नारी को सम्पत्ति समझना बन्द भी किजिऐ

 जब बात हम महिला को सम्मान देने की कर रहे हो तो हमे यह भी समझना होगा कि हम किस सामाजिक परिवेश मेँ रह रहेँ है
जहाँ पर कभी हम अर्धनारीश्वर की बात करते थे वही
अब आऐ दिन अपने ही घरोँ मेँ उसका अपमान करते हैँ
बाहर की बात तो बाद मेँ आती है
और अपमान करने को ढ़ेर सारे तर्क भी है
कभी उनके पहनावे को लेकर
कभी उनके आचरण/चरित्र को लेकर
कभी उनके सामाजिक बर्चस्व को लेकर
तो कभी उनके स्वतंत्रता को उनमुक्तता का नाम देकर
अब तो हद ही कर दी हमने
नारी को सम्पत्ति समझना बन्द भी किजिऐ
अरे भाई क्यो इनके पीछे हाथ पैर धोकर पड़े है हम
अपना अपना सुधार किजिऐ
सुधारना ही चाहते है तो
हम अपना आचरण,
वाणी,
सोँच
और
नजरिया सुधारेँ
अपनी मानसिकता को ठीक करेँ
और
अभी भी समय है इस टेलिविजन,
आधुनिक सिनेमाई संस्कृति
बाजारीकरण के इस अन्धी दौड़ से बाहर निकलने का हम प्रयत्न करेँ
हम किस गफलत मे हैँ हमरी परिवार नाम की संस्था टूटने के कगार पर है
उसका प्रमुख कारण है हमारे नैतिकता मे गिरावट


आचार्य नीरज

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