Tuesday 26 March 2013

मौन एक घटना है जीवन के लिए


सत्य वचन है कि
मौन ध्यान की ऊर्जा है
मौन से तात्पर्य वाणी का ही मौन होना नही है
जब तक
मनसा,
वाचा
कर्मणा
इन तीनो से मौन नही होते है तब तक मौन अधुरा है
यह तभी सम्भव है जब हमारा चित्त शाँत हो जाय
उसके लिऐ हमे वर्तमान मेँ जीना होगा
बहुदा हम या तो बीते हुए दिन मे खोऐ रहते है
या आने वाले दिन के बारे मे सोच कर परेशान/प्रसन्न होते है
जैसे जैसे हमारे विचारोँ मेँ स्थिरता आती जाती है हमारे मन मेँ स्थिरता आती जाती है
ऐसे ही वाणी
कर्म के लिऐ भी होता है
मौन एक घटना है जीवन के लिए
मौन जैसे ही घटीत होगा
हमारे अन्दर का पुष्प खिल उठेगा
सुगन्ध फैलने लगेगी
मौन से सांसारिक रुप से मन का मौत भले ही लगे लेकिन आत्मिक रुप से तो मन मौन होने पर मरता नही है वह अपने वास्तविक रुप मेँ प्रकट होता है
जब मौन धटीत होता है
तो साक्षात प्रकृति के साथ उसकी लयबध्ता दिखाई देने लगती है
काश एक बार हमारे भी मन मेँ मौन घटीत हो पाता
हम भी फुलोँ की तरह खिल जाते
फिर सभी ओर
आनन्द ही आनन्द होता


आचार्य नीरज

No comments:

Post a Comment