रंग
दूँ वसँती अपने
मन को तो
होली है
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तेरे रंग
मेँ अपने मन
को रंग पाऊँ
तो होली है
तेरे खातिर
तन मन अर्पित
कर पाऊँ तो
होली है
राग,द्वेष,अहँकार को छोड़
तुम्हे समर्पित कर पाऊँ
तो होली है
पतझड़ और
वसँत सरिखे जीवन
के इस धूप
छाँव मेँ मुस्काते
तेरे सँग
सँग चल पाऊँ
तो होली है
वीर भगत
सिँह के जैसे
रंग के वसंती
अपने मन को
मातृभूमि पर मर
मिट पाऊँ तो
होली है
नीरज
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