Tuesday 26 March 2013

यू ही साथ चल देने मात्र से भला कोई साथी कैसे हो सकता है


साथ चलने से ही कोई साथी नही होता
जो आप के विचारोँ के साथ चले वो ही साथी होता है
जो आपके जीवन के हर पल,
हर साँस,
हर सुख-दुःख,
मान-अपमान मेँ साथ हो वो साथी हमसफर होता है
जो आपके हँसने पर हँस पड़े,
रोने पर रो पड़े वो साथी होता है
जो आप से वर्षो बाद मिले भले ही आपने इस बीच कोई संवाद किया हो फिर भी उसकी आँखे भर आये
और बिना किसी गिला शिकवा के आपके गले लग जाय वो साथी होता है
जिसको आपने बिना शर्त चुना हो वो साथी होता है
और हाँ
एक बार साथी मिल गया फिर
मै क्या,
आप क्या,
कोई भी अकेला नही रह जाता है
तभी तो
कहते है
साथी रे तेरे बिना भी क्या जीना
यू ही साथ चल देने मात्र से भला कोई साथी कैसे हो सकता है



आचार्य नीरज

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